അധ്യാപകനെഴുതി പരിശീലിപ്പിച്ചു.ഗുരുദക്ഷിണയായി നന്ദന നൽകിയത് മിന്നും ജയം
സമ്മാനർഹമായ കവിത
मानव बंधुओ, इधर की कुरीतियों को क्यों चुपके ताक रहे हैं? ऐसे ही रहे तो बडी मुसीबत हो जाऐगी।जरा सोचिए और हल ढूँढ लें। मेरे मन की अफसोस को आपके सम्मुख रख देता हूँ। आशा है मुझे आपकी इज्जत पर।
रिश्ता
यही रिश्ता है आज के युग की मस्ती है।जनगण से मन पुलकित होता,
बिछुडन से मन कुचलित होता।अंदर की दुविधा में पडके,
चंचल मन भी विचलित होता।
ताकत है मैत्री के गुण में,हीनत है ईर्ष्या अवगुण में।
नाते छोडने आनेवाले रिश्तों की महिमा नहीं भाते।
मेल से ही रक्षा होती है,खो जाती अकेलापन में।
जनम हुआ है कोख से, पले उसी की गोदी में।
छोटी थीं उनकी उंगलियाँ नहीं छोडती सोते भी..
बडे बन गए हैं अभी,पुरानी बाँह अखरती।
बूढों के दिन में आता,अमन से साथ बैठता,
स्वचित्र लेता फिर लापता।-2
यही रिश्ता है आज के युग की मस्ती है।
2
परिवारों को इनकार करके,हथियारों को स्वीकारते हैं।
इशारा देते कपटी नेता,खूनी करते भोले जनगण।
विपक्षी नेता गम से आते,मन में दोनों मुस्काते हैं,
फूलचक्र बिछाते दोनों, अभिनय करते लाश के आगे ।
रोते फूट-फूट कर छाती मारके,अंदर खिल-खिलाके रहते दोनों।
मानवता की नकली झलक।
यही रिश्ता है आज के युग की मस्ती है।-2
रिश्ता बंधन नहीं मन का स्पंदन है,
गुफा की अंधेरी में उजाले का चाँद है।
नहीं पहचानता कोई महत्ता आपसी संबंध की
बर्बाद होता रहता है मूल्य जो रचित वो मनु का
हे अग्रदूत,हे मनुपुत्र विचार लो कुरीतियों की कीचड से
अपने आप बचो और यह भी कर लो,बचा लो तेरी पीढी को
सोचो बारंबार कर्म क्षेत्र में अटल रहो क्योंकि,
यही रिश्ता है आज के युग की मस्ती है।
...............शिवरूर..............
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हरिनारायणन शिवरुरिल्लम,नीलेश्वरम
സമ്മാനർഹമായ കവിത
मानव बंधुओ, इधर की कुरीतियों को क्यों चुपके ताक रहे हैं? ऐसे ही रहे तो बडी मुसीबत हो जाऐगी।जरा सोचिए और हल ढूँढ लें। मेरे मन की अफसोस को आपके सम्मुख रख देता हूँ। आशा है मुझे आपकी इज्जत पर।
रिश्ता
यही रिश्ता है आज के युग की मस्ती है।जनगण से मन पुलकित होता,
बिछुडन से मन कुचलित होता।अंदर की दुविधा में पडके,
चंचल मन भी विचलित होता।
ताकत है मैत्री के गुण में,हीनत है ईर्ष्या अवगुण में।
नाते छोडने आनेवाले रिश्तों की महिमा नहीं भाते।
मेल से ही रक्षा होती है,खो जाती अकेलापन में।
जनम हुआ है कोख से, पले उसी की गोदी में।
छोटी थीं उनकी उंगलियाँ नहीं छोडती सोते भी..
बडे बन गए हैं अभी,पुरानी बाँह अखरती।
बूढों के दिन में आता,अमन से साथ बैठता,
स्वचित्र लेता फिर लापता।-2
यही रिश्ता है आज के युग की मस्ती है।
2
परिवारों को इनकार करके,हथियारों को स्वीकारते हैं।
इशारा देते कपटी नेता,खूनी करते भोले जनगण।
विपक्षी नेता गम से आते,मन में दोनों मुस्काते हैं,
फूलचक्र बिछाते दोनों, अभिनय करते लाश के आगे ।
रोते फूट-फूट कर छाती मारके,अंदर खिल-खिलाके रहते दोनों।
मानवता की नकली झलक।
यही रिश्ता है आज के युग की मस्ती है।-2
रिश्ता बंधन नहीं मन का स्पंदन है,
गुफा की अंधेरी में उजाले का चाँद है।
नहीं पहचानता कोई महत्ता आपसी संबंध की
बर्बाद होता रहता है मूल्य जो रचित वो मनु का
हे अग्रदूत,हे मनुपुत्र विचार लो कुरीतियों की कीचड से
अपने आप बचो और यह भी कर लो,बचा लो तेरी पीढी को
सोचो बारंबार कर्म क्षेत्र में अटल रहो क्योंकि,
यही रिश्ता है आज के युग की मस्ती है।
...............शिवरूर..............
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हरिनारायणन शिवरुरिल्लम,नीलेश्वरम
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